गंगा को बचाने के लिए शंकराचार्य स्वरुपानंद सरस्वती के नेतृत्व में एक अभियान अब राष्ट्रीय आंदोलन का स्वरुप लेता दिख रहा है।
सरकार से मिली निराशा के बाद शंकराचार्य स्वरुपानंद सरस्वती और गंगा मुक्ति महासंग्राम के संयोजन नियुक्ति किये गए आचार्य प्रमोद कृष्णम दिल्ली में सभी धर्मों के धर्मगुरुओं के साथ राजनीतिक दलों को भी गंगा आंदोलन के साथ जोड़ रहे हैं। जिसके चलते 21 मई को वाराणसी में आंदोलन का प्रारम्भ होगा। मंच पर हिंदू धर्मगुरुओं के अलावा मुस्लिम धर्मगुरु भी साथ दिखेंगे।
गंगा पर बन रहे बांधों का विरोध और शहरों के मलमूत्रों को लगातार गंगा में डालकर गंदा करने के विरोध में आंदोलन की शंखनांद की गई है। आंदोलनकारियों की मांग है कि गंगा सहित किसी भी नदी में सीवर का पानी नहीं डाला जाए। बल्कि राष्ट्रीय नीति बनाकर सभी शहरों के सीवरों की जलनिकासी का अलग से प्रबंध किया जाये। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में बने नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी में गंगा की सफाई अभियान से जुड़े लोगों को शामिल करके एक ऑफिस मुहैया कराया जाए, गंगा सफाई की जिम्मेदारी की देखरेख के साथ हर पखवाड़े प्रगति रिपोर्ट भी मांगी जाए। ये मांग इसलिए भी क्योंकि गंगा को 2008 में राष्ट्रीय नदी घोषित करने और नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी बनाने के बाद भी गंगा में गंदगी बढ़ती जा रही है।
बिजली के नाम पर बांध की वकालत करने वालों के लिए आचार्य प्रमोद कृष्णम का सवाल है कि क्या बिजली बनाने के लिए केवल गंगा ही बची है? ये सवाल आस्था का भी है और प्रकृति से छेड़छाड़ रोकने का भी। आचार्य कृष्णन कहते हैं कि बिजली पैदा करने के लिए कोयले या सौर ऊर्जा पर सरकार क्यों नहीं ध्यान देती।